भारत के आजादी के संघर्ष में क्रांतिकारियों की किसी घटना का सबसे ज्यादा महत्व रहा है तो वह राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा की गई काकोरी कांड का ही रहा है। इस घटना से अंग्रेज पूरी तरह घबरा गए थे।
1922 में चौरी चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले
लिया था, तब नई पीढ़ी के क्रांतिकारियों को एक बड़ा झटका लगा था। क्योंकि बड़ी
उम्मीदों के साथ देश में बड़ी संख्या में लोग इस आंदोलन के साथ जुड़ गए थे। इन
नई पीढ़ी के क्रांतिकारियों ने महसूस किया कि भारत को जल्द से जल्द स्वतंत्र
करने के लिए अंग्रेजों को बलपूर्वक बाहर कर देना चाहिए। इसी सोच के साथ
इस घटना की नींव पड़ गई थी, जिसे इतिहास में काकोरी कांड या काकोरी षड्यंत्र के
नाम से जाना जाता है। इस घटना ने अंग्रेज़ों को बड़ा परेशान किया और उन तक एक
संदेश पहुंचा दिया कि हिन्दुस्तानी क्रांतिकारी उनसे लोहा लेने के लिए अब हर
तरह के तरीके को अपना सकते हैं।
महात्मा गांधी ने जब ‘असहयोग आंदोलन’ वापस ले लिया था, तो कई भारतीय युवा निराश
हो गए थे, अशफाकउल्ला खान भी उनमें से एक थे। अशफाकउल्ला खान भी उन प्रमुख
क्रांतिकारीयों में से थे जो बलपूर्वक अंग्रेजों को बाहर करने में विश्वास करते
थे। अशफाक ने महसूस किया कि देश जल्द से जल्द आजाद हो जाना चाहिए और इसलिए
उन्होंने सशस्त्र विद्रोह को संगठित करने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा
स्थापित हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल होने का फैसला
किया।
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शहीद अशफाकउल्ला खान फाइल फोटो |
काकोरी कांड (ट्रेन डकैती) के क्या उद्देश्य थे? -
नवगठित हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन जिसका मिशन एक सशस्त्र विद्रोह के
माध्यम से भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्त करना था। 8 अगस्त 1925
को इस संगठन की एक बैठक हुई जिसमें इस संगठन के लिए हथियार खरीदने के लिए धन का
इंतजाम करने पर विचार करना था। अशफाकउल्लाह खान को ट्रेन से सरकारी खजाना
ले जाने की बात पता थी, उन्होंने यह बात बैठक में बताई। जहां सरकारी खजाना की लूट
की योजना बनाई गई। लेकिन वो इस लूट के पक्ष में नहीं थे।
कब और कैसे काकोरी कांड को अंजाम दिया गया?
9 अगस्त 1925 क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी के पास
ट्रेन को चेन खींचकर रोका और रुपये लूट कर फरार हो गए। इस ट्रेन में ब्रिटिश
सरकार के खजाने के मनी-बैग थे जिसमे आठ हजार रुपये थे। इस काकोरी कांड ने आजादी
के आंदोलन को एक नई धार दी, इस कांड से हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत।
पकड़े गए क्रान्तिकारि और हुई सजा-
लूट के बाद क्रांतिकारी लखनऊ भाग गए। इस घटना ने अंग्रेजों को पूरी तरह से हिला
दिया था और पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। ब्रिटिश प्रशासन ने क्रांतिकारियों को
गिरफ्तार करने के लिए एक अभियान शुरू किया। वैसे तो इस षड़यंत्र में केवल 10
क्रांतिकारी ही शामिल थे, लेकिन 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उन पर मुकदमा
चला और उन्हें सजा सुनाई गई। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और रोशन सिंह को
इस काण्ड के मास्टरमाइंड ठराया गया और इन्हे फांसी की सजा सुनाई। लेकिन रोशन सिंह
इस मामले में सम्मिलित नहीं थे, रोशन सिंह को दूसरे मामले में सबूत ना होने के
कारण इस मामले में फसाया गया।
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शहीद अशफाकउल्ला खान प्राणि उद्यान गोरखपुर |
फ़नाह हैं हम सबके लिए,हम पै कुछ नहीं मौक़ूफ़...वक़ा है एक फ़कत जाने की ब्रिया के लिए
इसके अलावा उन्होंने ने यह शेर भी पढ़ा...
तंग आकर हम उनके ज़ुल्म से बेदाद से।चल दिए सूए अदम ज़िन्दाने फ़ैज़ाबाद से।।
22 October 1900 को शहीद अशफ़ाक़ उल्ला खान ने हिन्दोस्तान की मिट्टी में जन्म
लिया था और महज़ 27 साल की उम्र में देश को आजाद कराने के लिये फॉंसी के फंदे
पर झूल गये थे, इस महान क्रांतिकारी के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
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